उत्तर प्रदेश में पहले चरण की 58 सीटों पर आज चुनाव प्रचार थम गया। पश्चिमी यूपी की इन सीटों पर 10 फरवरी को मतदान होना है। इस चरण में राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत सिंह सुर्खियों में छाए हुए हैं। 2017 में महज एक सीट जीतने वाली रालोद इस चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकती है। जयंत की सभाओं में उमड़ी भीड़ चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रही पार्टी के बढ़ते जनाधार संकेत है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि जब से जयंत साथ आए हैं उत्तर प्रदेश की हवा बदल गई है।
इसलिए जयंत सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अपनी रैलियों में रालोद-सपा गठबंधन पर तीखे प्रहार कर रहे हैं और गर्मी शांत कर देने जैसी बयानबाजी पर उतारू हैं। जबकि चुनाव से कुछ ही दिन पहले भाजपा के नेता जयंत सिंह को साथ आने का न्योता दे रहे थे। खुद अमित शाह भी जयंत की तारीफ कर रहे थे।
नफरत की राजनीति के खिलाफ टिकाऊ स्टैंड
आखिर ऐसा क्या हुआ कि भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे स्थापित दलों के बीच एक नया चेहरा यूपी की राजनीति में छा गया। इसके पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है नफरत की राजनीति के खिलाफ और किसानों के मुद्दों पर जयंत सिंह का टिकाऊ स्टैंड। साल 2014, 2017 और 2019 की शिकस्त के बावजूद उन्होंने पाला नहीं बदला और विपक्ष की भूमिका को डटकर निभाते रहे। इस दौरान भाजपा से हाथ मिलाने के कई मौके आए लेकिन उन्होंने विचारधारा से समझौता नहीं किया। भाजपा के खिलाफ उनका स्पष्ट रूख उन्हें विपक्ष के गंभीर नेताओं में शुमार करता है। भाजपा की पेशकश के जवाब में उन्होंने दो टूक कह दिया कि वे कोई चवन्नी नहीं हैं जो पलट जाएं।
मेरी लड़ाई जनता के हक़ में है और ये अनवरत जारी रहेगी। मैं कोई चवन्नी नहीं जो पलट जाऊंगा ~चौधरी जयंत सिंह#JayantChaudhary #Vote4RLD #UPElections2022 pic.twitter.com/P3VahymCmD
— Rashtriya Lok Dal (@RLDparty) January 28, 2022
हाथरस लाठीचार्ज से बनी पहचान
साल 2020 में हाथरस कांड के वक्त जयंत सिंह पर हुए लाठीचार्ज ने उनके समर्थकों को झकझोर दिया था। तब तक किसान आंदोलन शुरू नहीं हुआ था। हाथरस की घटना के बाद रालोद की महापंचायतों का सिलसिला शुरू हुआ। उस घटना को वे आज भी अपने भाषणों में प्रमुखता से उठा रहे हैं। पिछले साल लखीमपुर खीरी में किसानों पर थार चढ़ाने की घटना के बाद वे पुलिस को चकमा देकर मृतक किसानों के गांव पहुंच गए थे। ये दोनों घटनाएं जयंत के राजनीतिक जीवन में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। दोनों ही मौकों पर उन्होंने लोगों के साथ खड़े होकर संघर्ष के जज्बे का परिचय दिया।
#हाथरस की बेटी के परिजनों का दुःख साझा करने जा रहे जयंत चौधरी (@jayantrld) जी एवं रालोद कार्यकर्ताओं पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज बेहद शर्मनाक और निंदनीय है।
— Rashtriya Lok Dal Rajasthan (@RLDRajasthan) October 4, 2020
अहंकारी योगी सरकार लाठी के बल पर लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज को दबाना चाहती है। #बलात्कार_से_UP_शर्मसार pic.twitter.com/seZOpxDKUS
किसानों के मुद्दों पर लगातार सक्रिय
रालोद किसानों के मुद्दों पर काफी सक्रिय है। किसान आंदोलन को पार्टी ने पूरा समर्थन दिया था। पिछले साल 28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर से जब किसानों का धरना हटाने की तैयारी थी, तब रालोद अध्यक्ष अजित सिंह का फोन राकेश टिकैत के पास पहुंचा और पूरा माहौल बदल गया। किसान आंदोलन के दौरान ही जयंत ने जगह-जगह किसान महापंचायतें कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। उसका असर अब दिख रहा है। यूपी में गन्ना किसानों के भुगतान, एमएसपी और महंगी बिजली जैसे मुद्दों पर रालोद लगातार धरने-प्रदर्शन करती रही है। जब कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू हुआ तो उसे रालोद का समर्थन मिला। उसी तरह अब रालोद को किसान आंदोलन से पैदा सत्ता विरोधी माहौल का लाभ मिल सकता है। जब भाजपा नेताओं ने उनसे पाला बदलने की पेशकश की तो उनका दो टूक जवाब था कि न्योता मुझे नहीं, उन +700 किसान परिवारों को दो जिनके घर आपने उजाड़ दिए!
न्योता मुझे नहीं, उन +700 किसान परिवारों को दो जिनके घर आपने उजाड़ दिए!!
— Jayant Singh (@jayantrld) January 26, 2022
चुनाव हारे पर हिम्मत नहीं
लगातार शिकस्त के बावजूद जयंत सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। बल्कि महापंचायतों, जनसभाओं और रोड शो करते हुए यूपी के तमाम जिलों में घूमे। उनकी रैलियों में खूब भीड़ उमड़ रही है जो उनकी बढ़ती लोकप्रियता का सबूत है। कोविड काल की पांबदियों को छोड़ दे तो पिछले दो साल से जयंत लगातार जनसंपर्क करते हुए पश्चिमी यूपी के चप्पे-चप्पे में धूमे। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के माहौल में भाईचारे और रोजगार की बात करते रहे।
रालोद को फिर से खड़ा करने की कवायद
पिछले साल चौ. अजित सिंह के निधन के बाद जयंत की जिम्मेदारी बढ़ गई। इसलिए उन्होंने नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने का बीड़ा उठाया। परंपरागत जनाधार के अलावा समाज के विभिन्न वर्गों को साथ जोड़ने की कवायद में जुट गये। सोमपाल शास्त्री, शाहिद सिद्दकी, प्रशांत कनौजिया की रालोद में एंट्री इन्हीं कोशिशों का नतीजा है। रालोद के कई पुराने नेताओं को साथ जोड़ने में जयंत कामयाब रहे। उनका दारोमदार किसान-मजदूर को साथ जोड़ने और विभिन्न वर्गों की सोशल इंजीनियरिंग पर है।
संगठन की मजबूती पर जोर
पिछली असफलताओं से सबक लेते हुए जयंत सिंह ने पार्टी संगठन और आईटी सेल को मजबूत करने पर जोर दिया, उसी का नतीजा है कि आज रालोद के पास कार्यकर्ताओं का नेटवर्क है जो जमीनी और डिजिटल प्रचार में भाजपा के मजबूत तंत्र को टक्कर दे रहे हैं। गांव-किसान और चौधरी चरण सिंह से भावनात्मक जुड़ाव रखने वाले तमाम लोग रालोद के समर्थन में आ गये हैं जिसका असर चुनावी माहौल पर दिख रहा है। किसानों के अलावा बेरोजगारी, महंगाई और दलित-वंचितों के मुद्दों पर सक्रियता ने जयंत सिंह को उभरने में मदद की है। उन्होंने रालोद के घोषणा-पत्र को एक अभियान की शक्ल दी और उसके जरिये विभिन्न वर्गों तक पहुंचने का प्रयास किया।
सीधा संवाद, देसी अंदाज
जयंत सिंह की लोकप्रियता की एक वजह उनका देसी अंदाज और दो टूक बात करने की शैली भी है। यह शैली उन्होंने हाल ही में विकसित की है। वे पश्चिमी यूपी की आम बोलचाल की भाषा में लोगों से सीधा संवाद करते हैं और विरोधियों को खरी-खरी सुनाने का कोई मौका नहीं चूकते। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के गर्मी वाले बयान के जवाब में उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि हम तो पैदा ही गर्म हुए थे, हमारा क्या इलाज़ कर लोगे। ऐसी बातों से वे अपने समर्थकों में जोश भर देते हैं।
'हम तो पैदा ही गर्म हुए थे, हमारा क्या इलाज़ कर लोगे' ~चौधरी जयंत सिंह@jayantrld @myogiadityanath pic.twitter.com/ZRJNGajzqO
— Rashtriya Lok Dal (@RLDparty) February 2, 2022
हिंदू-मुस्लिम की बजाय रोजगार, भाईचारे पर जोर
मीडिया भले ही जयंत सिंह को बार-बार जाट पहचान से जोड़ रहा है लेकिन अपने भाषणों में वे जाट के नाम पर वोट नहीं मांगते। उनका जोर हिंदू-मुस्लिम की बजाय रोजगार, विकास और किसानों के मुद्दों पर है। नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना काल की परेशानियों को लेकर वे भाजपा पर खूब प्रहार कर रहे हैं। महंगाई और बेरोजगारी को लेकर मोदी व योगी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। इस सबके बावजूद भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे का मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं होगा। कई सीटों पर उनके सामने अपने वोट बैंक को सपा उम्मीवारों के पक्ष में डलवाने की चुनौती है।
पॉपुलर कल्चर में आरएलडी आई रे…
जयंत की बढ़ती लोकप्रियता में उनका कैंपेन सॉन्ग आरएलडी आई रे भी काफी मददगार साबित हो रहा है। एंडी जाट का यह गाना पश्चिमी यूपी में धूम मचा रहा है। यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर के जरिये रालोद के चुनाव अभियान गांव-गांव तक पहुंचाने में पार्टी के सोशल मीडिया वालंटियर्स भी काफी मेहनत कर रहे हैं। किसान आंदोलन से बना माहौल भी सपा-रालोद के काम आ रहा है।
Up में बारात में गाना बज रहा है "आरएलडी आई रे" pic.twitter.com/noPS3MfGay
— Kavish Aziz (@azizkavish) February 7, 2022
चौ. चरण सिंह और बाबा टिकैत की विरासत
जयंत सिंह में रालोद के समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह की झलक देखते हैं। उन्हें किसान नेता चौ. महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र नरेश टिकैत का आशीर्वाद भी मिल चुका है। भाकियू भले ही सीधे तौर पर चुनावी मैदान में नहीं उतरी लेकिन भाजपा के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा के अभियान का फायदा रालोद को मिल सकता है।
राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष @jayantrld आज भारतीय किसान यूनियन के गढ़ सिसौली पहुंचे, किसान ज्योति पर आहुति दी, भोजन किया और भाकियू अध्यक्ष @NareshTikait का आशीर्वाद लिया। @OfficialBKU pic.twitter.com/KemFStpL4O
— aslibharat.com (@aslibharat_) February 6, 2022
चुनौतियां भी कम नहीं
मोदी-योगी जैसे दिग्गजों के सामने जयंत सिंह की चुनौतियों भी कम नहीं हैं। गठबंधन और टिकटों के बंटवारे को लेकर भी उन्हें कई मोर्चों पर जूझना पड़ा। कई सीटों पर समझौते करने पड़े, कई जगह अपने सिंबल पर सपा के उम्मीदवार उतारने पड़े। इसके बावजूद वे अपने मुद्दों और विचारधारा पर अडिग हैं। इस कोशिश ने उन्हें विपक्ष के प्रमुख नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है। यह लोकप्रियता वोटों में कितनी तब्दील होती है यह तो 10 मार्च को पता चलेगा, लेकिन जयंत इस चुनाव में बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं, इसमें कोई दोराय नहीं है।