देहरादून। पर्वतीय क्षेत्रों में माननीयों और पुलिस की गाड़ियों के हूटरों का शोर न केवल पहाड़ की शांति भंग कर रहा है तो वहीं शहरों में भी वीआईपी कल्चर ने आम जनता का जीना मुहाल कर दिया है। पहाड़ों में बजने वाले सायरन ना केवल रास्ते चलते लोगों को परेशान करते हैं बल्कि वन्यजीवों पर भी इस ध्वनि प्रदूषण का बुरा असर पड़ रहा है। कैबिनेट मंत्रियों, विधायकों से लेकर जिला पंचायत अध्यक्षों, सदस्यों यहां तक कि नेताओं के खासमखास छुटभैया भी पहाड़ों में हूटर बजाते हुए घूमते रहते हैं।
इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने ट्वीट करते हुए सवाल उठाया है कि पहाड़ की खाली सड़कों पर आप लोग क्यों हूटर बजाते हैं? वीआईपी या मंत्री जी को ऐसी क्या इमरजेंसी है? आप क्यों आम पब्लिक को डिस्टर्ब कर रहे हैं और ध्वनि प्रदूषण कर रहे हैं? उत्तराखंड पुलिस को इस सिस्टम को बंद करना चाहिए, ये गलत प्रैक्टिस है।
पहाड़ की खाली सड़कों पर आप लोग क्यों हूटर बजाते हैं? VIP या मंत्री जी को ऐसी क्या इमरजेंसी है? आप क्यों आम पब्लिक को डिस्टर्ब कर रहे हैं और ध्वनि प्रदूषण कर रहे हैं? #Uttarakhand पुलिस @uttarakhandcops को इस सिस्टम को बंद करना चाहिए, ये गलत प्रैक्टिस है। pic.twitter.com/cgBE5em7EC
— Anoop Nautiyal (@Anoopnautiyal1) December 1, 2022
अनावश्यक हूटर के प्रयोग पर सख्ती दिखाते हुए डीजीपी अशोक कुमार ने सभी जनपद प्रभारियों को पुलिस वाहनों के आवागमन के दौरान सामान्य परिस्थितियों में अनावश्यक रूप से हूटर का प्रयोग न करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने बताया कि प्रायः देखने में आया है कि पुलिस के वाहनों के आवागमन के दौरान सामान्य परिस्थितियों एवं खाली सड़कों पर भी अनावश्यक रूप से हूटर का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे आम जनमानस को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। इसलिए सभी जनपद प्रभारियों को अनावश्यक रूप से हूटर का प्रयोग न किये जाने हेतु निर्देशित किया है।
आवागमन के दौरान पुलिस द्वारा सामान्य परिस्थितियों में अनावश्यक रूप से हूटर के प्रयोग किये जाने का संज्ञान लेकर श्री @AshokKumar_IPS, DGP Sir ने समस्त जनपद प्रभारियों को दिए निर्देश।#UttarakhandPolice @ANINewsUP pic.twitter.com/PERKEuePfV
— Uttarakhand Police (@uttarakhandcops) December 1, 2022
राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती का कहना है कि शहादतों और आंदोलनों के बाद मिले इस राज्य में वीआईपी कल्चर बुरी तरह से हावी हो रहा है। सुबह से लेकर शाम तक सड़कों पर माननीयों की गाड़ियों के हूटर की आवाज सुनाई देती है। अलग उत्तराखंड राज्य हमने इसलिए तो नहीं मांगा था कि वीआईपी लोगों की मनमानी चले। चौक चौराहों पर ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मी भी सायरन की आवाज सुन कर हड़बड़ा जाते हैं कि कहीं कोई वीआईपी तो जाम में नहीं फंस गया है। वहीं वीआईपी वाहनों और एंबुलेंस के सायरन की आवाज एक जैसी होने के कारण लोगों को पता नहीं चल पाता है कि कौन-सी गाड़ी का सायरन बज रहा है। कई बार माननीयों के वाहन खाली भी होंगे तो उनके चालक रौब गांठने के चक्कर में खाली सड़कों पर भी बेवजह हूटर बजाते हुए जाते हैं। राज्य को इस अपसंस्कृति से बचाने की जरूरत है।
उत्तराखंड राज्य का निर्माण भले ही जन आंदोलन की कोख से हुआ, लेकिन वीआईपी कल्चर राज्य में गहरी जड़ें पकड़ चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री मेज (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने इस वीआईपी कल्चर पर ब्रेक लगाने का प्रयास किया था। उन्होंने हूटरों और लंबे काफीले पर सख्ती कर दी थी जिसके बाद मंत्रियों और विधायकों के वाहनों में हूटर बजना लगभग बंद हो गया था। लेकिन सरकार बदलते ही वीआईपी कल्चर फिर से हावी हो गया। अब तो भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की, मंत्रियों से लेकर निगमों के अध्यक्ष, आयोगों के अध्यक्ष सदस्य तक वीआईपी हनक में रहते हैं।