उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार 65.37 फीसदी मतदान हुआ जबकि 2017 में 65.60 फीसदी और 2012 में 67.22 फीसदी मतदान हुआ था। पिछली बार के मुकाबले मतदान प्रतिशत में थोड़ी गिरावट आई है। 2012 के मुकाबले मतदान 1.85 फीसदी की कम है। हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में सबसे ज्यादा 74.77 फीसदी और 72.27 फीसदी मतदान हुआ, वहीं अल्मोडा जिले में सबसे कम 53.71 फीसदी, पौड़ी गढ़वाल में 54.87 फीसदी और टिहरी गढ़वाल में 56.34 फीसदी मतदान हुआ। पर्वतीय और मैदानी जिलों में मतदान का अंतर साफ दिख रहा है।
उत्तराखंड में पिछले 10 साल से मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ा है बल्कि इसमें गिरावट आई है। मतदान में इस ठहराव को पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों के पलायन, मतदाताओं में जागरुकता की कमी, सर्दियों में चुनाव कराने समेत कई कारणों से जोड़कर देखा जा रहा है। लगातार दो चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है। लेकिन यह उत्तराखंड में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने चुनाव से पहले या बाद में कम मतदान को लेकर चिंता जाहिर नहीं की।
2022 और 2017 में कई समानताएं
उत्तराखंड में 2022 और 2017 के मतदान पैटर्न में कई समानताएं हैं। 2017 में मैदान की छह विधानसभा सीटों पर 80 फीसदी से ऊपर मतदान हुआ था जबकि पहाड़ की 4 विधानसभा सीटों पर 50 फीसदी से कम मतदान हुआ था। इस बार भी मैदान की छह सीटों पर 78 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है जबकि पर्वतीय क्षेत्रों की 4 सीटों पर 50 फीसदी से कम मतदान हुआ। 2017 में उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले में सर्वाधिक मतदान हुआ था। इस बार भी इन दोनों जिलों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई। हालांकि, उधमसिंह नगर जिले के मतदान में 3.74 फीसदी की गिरावट आई और इस बार हरिद्वार आगे निकल गया।
2017 में अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों में सबसे कम मतदान हुआ था। इस बार भी सबसे कम मतदान इन्हीं जिलों में हुआ है। जिन तीन सीटों पर 2017 में सर्वाधिक मतदान हुआ था वे हरिद्वार जिले में थीं। इस बार भी सर्वाधिक मतदान वाली तीनों सीटें हरिद्वार ग्रामीण, भगवानपुर और लक्सर हरिद्वार जिले में हैं। इसी तरह 2017 में सबसे कम मतदान पहाड़ की सल्ट, चौबट्टाखाल और लैंसडाउन सीट पर हुआ था। इस बार भी प्रदेश में सबसे कम मतदान इन तीन सीटों पर हुआ है।
9 जिलों में औसत से कम मतदान
हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में अधिक मतदान की वजह से उत्तराखंड में औसत मतदान 65.37 फीसदी तक पहुंच गया। लेकिन यह आंकड़ा राज्य की सही तस्वीर पेश नहीं करता है। उत्तराखंड के 13 में से 9 जिले ऐसे हैं जहां राज्य के औसत मतदान से कम वोटिंग हुई। पर्वतीय जिलों में उत्तरकाशी एकमात्र जिला है जहां राज्य के औसत से अधिक 68.48 फीसदी मतदान हुआ। हालांकि, 2017 के मुकाबले वहां भी मतदान में कमी आई है।
2017 के मुकाबले जिन जिलों के मतदान प्रतिशन गिरा है उनमें उत्तरकाशी, हरिद्वार, नैनीताल और उधमसिंह नगर जिले शामिल हैं। जबकि चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा और चंपावत जिलों में मतदान का प्रतिशत थोड़ा बढ़ा है। सबसे ज्यादा 3.26 फीसदी बढ़ोतरी चमोली जिले में दर्ज की गई।
हरिद्वार ग्रामीण में सर्वाधिक, चौबट्टाखाल में सबसे कम मतदान
उत्तराखंड में सर्वाधिक 81.94 फीसदी मतदान हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में हुआ जबकि सबसे कम 45.33 फीसदी वोट पौड़ी गढ़वाल जिले की चौबट्टाखाल विधानसभा में पड़े। राज्य में सबसे कम मतदान वाली पांच में से दो सीटें पौड़ी और दो अल्मोड़ा जिले में हैं जबकि सर्वाधिक मतदान वाली टॉप 5 में से चार सीटें हरिद्वार जिले में हैं।
35 सीटों पर औसत से कम मतदान
उत्तराखंड विधानसभा की 70 में से 35 सीटों में राज्य के औसत 65.37 फीसदी से कम मतदान हुआ है। इन 35 सीटों में से 9 सीटें मैदानी जिलों में हैं जबकि 26 सीटें पर्वतीय क्षेत्रों में हैं। मैदान की 18 सीटें ऐसी हैं जहां 70 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। इनमें से 8 सीटें हरिद्वार जिले में हैं। मतदान प्रतिशत में पर्वतीय जिलों और मैदानी जिलों के बीच यह खाई लगातार बनी हुई है जिसे पाटने के लिए ना तो राजनीतिक दलों ने गंभीरता दिखाई और ना ही चुनाव आयोग ने विशेष प्रयास किए हैं।
शहरी सीटों पर कम मतदान
राज्य के औसत से कम मतदान वाले जिलों में देहरादून भी शामिल है। देहरादून कैंट में महज 56.89 फीसदी वोटिंग हुई। देहरादून शहर की चार विधानसभा सीटों पर 60 फीसदी से कम मतदान हुआ जबकि विकासनगर में 75.74 फीसदी और सहसपुर में 72.98 फीसदी वोटिंग हुई। उधर, नैनीताल सीट पर भी मात्र 55.25 फीसदी मतदान हुआ।
हरिद्वार जिले में जहां प्रदेश में सर्वाधिक मतदान हुआ वहां भी शहर की सीटों पर कम वोटिंग हुई। हरिद्वार शहर में 64.89 फीसदी और रुड़की में 63.10 फीसदी वोट पड़े। इसी तरह उधमसिंह नगर की काशीपुर सीट पर 64.26 फीसदी मतदान हुआ। ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण सीटों के मुकाबले प्रदेश के शिक्षित शहरी क्षेत्रों में कम मतदान हुआ है। मैदान की ग्रामीण सीटों पर जहां 75-80 फीसदी मतदान हुआ, वहीं शहरी सीटों पर मतदान का प्रतिशत 60-65 फीसदी के आसपास सिमट गया।
तमाम विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी वोट डालने वाले #उत्तराखंड के पहाड़ के मतदाताओं को नमन। रुद्रप्रयाग में राजपुर रोड से ज्यादा, डीडीहाट में धर्मपुर से ज्यादा और धारचूला में देहरादून कैंट से ज्यादा मतदान होता है (%)। शहर के मतदाताओं के लिए पहाड़ के मतदाता लंबी लकीर खींच रहे हैं।
— Anoop Nautiyal (@Anoopnautiyal1) February 18, 2022
चुनाव आयोग पर उठे सवाल
नीतिगत मामलों के जानकार और एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि शहरी मतदाता अपने अधिकारों और मुद्दों को लेकर काफी मुखर रहते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी सीटों पर मतदान का प्रतिशत काफी कम रहा है। नौटियाल ने पिछले 10 साल से मतदान में ठहराव के पीछे पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन, सर्द मौसम में चुनाव, कोविड काल के असर, मतदाताओं में जागरुकता के अभाव और चुनाव आयोग के प्रयासों में कमी समेत कई कारण गिनाए हैं। उनका मानना है कि मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए सरकार, राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग, सिविल सोसायटी, मीडिया और नागरिकों को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
1. Weather
— Anoop Nautiyal (@Anoopnautiyal1) February 16, 2022
2. Covid
3. Migration
4. Voter apathy
5. Missing names in voter list
6. Booth distances in hill dist
7. Long weekend (2nd Sat on 12 Feb & voting Mon 14 Feb)
8. Limited impact of EC voter awareness campaigns
9. Missing "चुनावी माहौल"
10. Same voting patterns
उत्तराखंड में 14 फरवरी को चुनाव कराने के फैसले पर सवाल उठाते हुए अनूप नौटियाल कहते हैं कि भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए राज्य में आखिरी चरण में चुनाव कराने चाहिए थे। जन भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग को सिविल सोसायटी समेत सभी पक्षों को साथ लेकर काम करना चाहिए था। पिछले तीन चुनावों से सबक लेना जरूरी है। जिन सीटों पर मतदान का प्रतिशत कम रहता है वहां लीक से हटकर टारगेटेड कैंपेन की जरूरत है। नौटियाल मानते हैं कि चुनाव आयोग के प्रचार और जागरूकता अभियान पुराने ढर्रे पर चले जिनमें इनोवेशन की कमी थी। वोटर लिस्ट से लोगों के नाम कटने, पर्वतीय क्षेत्रों में पोलिंग बूथ की दूरी और मतदाताओं की उदासीनता की वजह से भी मतदान प्रतिशत में ठहराव आया है।
कई पर्वतीय सीटों पर खूब मतदान
ऐसा नहीं है कि पहाड़ की सभी सीटों पर मतदान कम हुआ। पुरोला में 69.40 फीसदी, चकराता में 68.24 फीसदी, यमुनोत्री में 68.12 फीसदी, गंगोत्री में 68.01 फीसदी और केदारनाथ में 66.43 फीसदी मतदान हुआ है। लेकिन पहाड़ की अधिकांश सीटों पर मतदान प्रतिशत में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। कमोबेश 2017 वाला ही पैटर्न 2022 में भी रहा है। पहाड़ की कई सीटों पर मैदान की शहरी सीटों से अधिक मतदान हुआ है।
2012 पर ठहरा मतदान प्रतिशत
उत्तराखंड में 2002 के चुनाव में 54.34 फीसदी मतदान हुआ था जो 2007 में बढ़कर 59.50 फीसदी तक पहुंचा गया। 2012 की वोटिंग में जबरदस्त उछाल आया और राज्य में 67.22 फीसदी मतदान हुआ। लेकिन तब से मतदान में गिरावट का सिलसिला जारी है और यह 65 फीसदी के आसपास ठहरा हुआ है। हैरानी की बात हे कि पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार कम मतदान के बावजूद इस बार बर्फबारी के मौसम में चुनाव कराये गये। चुनाव से पहले बारिश और बर्फबारी के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में उम्मीदवारों को प्रचार में दिक्कतें आईं। पोलिंग पार्टियों को पहुंचने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा।
उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी को देखते हुए 14 फरवरी को चुनाव कराने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं।
— उत्तराखंड आउटलुक (@UKOutlooktweet) February 3, 2022
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उत्तराखंड में मतदान प्रतिशत में ठहराव को राज्य के राजनीतिक माहौल से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इस बार भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर, आम आदमी पार्टी के मजबूती से चुनाव लड़ने और कई सीटों पर उत्तराखंड क्रांति दल की प्रबल दावेदारी से मतदान प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन इस बार भी मतदान पिछले चुनाव के आंकड़े को नहीं छू पाया।